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चैत्यवंदन विधि सहित
तुं गति तुं मति आशरो, तुं आलंबन मुज प्यारो रे, वाचक यश कहे माहरे, तुं जीव-जीवन आधारो रे. गि०५
दोनो हाथों को जोड, ललाट पर रखकर सूत्र बोले
परमात्मासे भक्ति फलरुप १३ प्रकारकी याचना ___ जय वीयराय ! जग गुरु !
होउ ममं तुह पभावओ भयवं ! भव निव्वेओ मग्गाणुसारिआ इट्ठफल सिद्धि . (१) लोग विरुद्धच्चाओ गुरु जण पूआ परत्थकरणं च। सुहगुरु जोगो तव्वयण सेवणा आभवमखंडा । (२) अब दोनों हाथोंको ललाट से नीचे करके, हाथ ललाट और नाभिके बीच रखना वारिज्जइ जइ वि नियाण बंधणं वीयराय !
तुह समये। तह वि मम हुज्ज सेवा, भवे भवे तुम्ह चलणाणं। (३)
दुक्ख खओ कम्म खओ,
समाहि मरणं च बोहि लाभो अ। संपज्जउ मह एअं, तुह नाह ! पणाम करणेणं| (४)
सर्व मंगल मांगल्यं, सर्व कल्याण कारणम्।
प्रधानं सर्व धर्माणां, जैनं जयति शासनम् । (५) हे वीतराग प्रभु ! हे जगद्गुरु ! आपकी जय हो ! हे भगवन् ! आपके प्रभाव से संसार के प्रति वैराग्य, (मोक्ष) मार्ग के अनुसार प्रवृत्ति, इष्ट फल की सिद्धि ..(मुझे प्राप्त हो) (१)