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चैत्यवंदन विधि सहित
भरत, औरावत, महाविदेह क्षेत्रमें रहेनेवाले साधु भगवंतोकी वंदना
जावंत के वि साहू, भर हेरवय महाविदेहे अ सव्वेसिं तेसिं पणओ,
तिविण तिदंड विरयाणं । (१)
भरत, ऐरावत और महाविदेह क्षेत्र में जितने भी साधु जो तीन प्रकार से (मन, वचन और कायासे), तीन दंड से (करते नहि, कराते नहि और करने की अनुमोदना) निवृत्त हैं, उन सबको मैं प्रणाम करता हूँ । (१)
पंचपरमेष्ठिको नमस्कार
नमोर्हत् सिद्धा-चार्यो-पाध्याय सर्व साधुभ्यः ।
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(यह सूत्र स्त्रीय कभी भी नहीं बोले )
११
अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और सर्व साधुओं को नमस्कार हो ।
महावीर स्वामीका स्तवन
गिरुआ रे गुण तुम तणा, श्री वर्धमान जिनराया रे; सुतां श्रवणे अमी झरे,
मारी निर्मल थाये काया रे. गि०१
तुम गुण गण गंगाजले, हुं झीलीने निर्मल थाउं रे, अवर न धंधो आदरूं, निशदिन तोरा गुण गाउं रे. गि०२ झील्या जे गंगाजले, ते छिल्लर जल नवि पेसे रे; मालती फूले मोहीआ, ते बावल जई नवि बेसे रे. गि०३ एम अ तुम गुण गोठशुं, रंगे राच्या ने वळी माच्या रे; ते केम परसुर आदरूं, जे परनारी वश राच्या रे. गि०४