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चैत्यवंदन विधि सहित
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लोक विरुद्ध प्रवृत्ति का त्याग, गुरुजनोंके प्रति सन्मान, परोपकार प्रवृत्ति, सद्गुरुओं का योग और उनकी आज्ञा के पालन की प्रवृत्ति, पूरी भव परंपरा में अखंडित रूप से मुझे प्राप्त हो (२) हे वीतराग ! आपके शास्त्र में यद्यपि निदानबंधन निषेध किया गया है, तब भी भवो भव मुझे आपकी चरणसेवा प्राप्त हो । (३) हे नाथ ! आपको प्रणाम करने से दुःख का नाश, कर्म का नाश, समाधि मरण और बोधि लाभ मुझे प्राप्त हो । (४) सर्व मंगलों में मंगल, सर्व कल्याणों का कारण, सर्व धर्मों में श्रेष्ठ ऐसा जैन शासन जयवंत है । (५)
(अब खडे होकर)
प्रभुजी की वंदना करने के लिए श्रद्धादि द्वारा
आलंबन लेकर कायोत्सर्ग करनेका विधान अरिहंत चेईयाणं, करेमि काउस्सग्गं (१) 'वंदण वत्तियाए, पूअण वत्तियाए, सक्कार वत्तियाए, सम्माण वत्तियाए, बोहिलाभ वत्तियाए,
निरुवसग्ग वत्तियाए (२) सद्धाऐ, मेहाए, धिईए, धारणाए, अणुप्पेहाए,
वड्डमाणीए ठामि काउस्सग्गं (३) अरिहंत प्रभु की प्रतिमाओंके आलंबनसे (मन-वचन-काय से संपन्न) वंदन हेतु, (पुष्पादि से सम्पन्न) पूजन हेतु, (वस्रादि से सम्पन्न) सत्कार हेतु, (स्तोत्रादि से सम्पन्न) सन्मान हेतु, (तात्पर्य, वंदनादि की अनुमोदना के लाभार्थ) (एवं) सम्यक्त्व हेतु, मोक्ष हेतु, (यह भी कायोत्सर्ग ‘किन साधनों से ? तो उसका