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चैत्यवंदन विधि सहित
कीर्तन, वंदन, पूजन किये गए ऐसे, व लोक (सुर असुर आदि सिद्धजन के समूह ) में जो श्रेष्ठ सिद्ध हैं वे मुझे भव - आरोग्य (मोक्ष) के लिए बोधिलाभ एवं उत्तम भावसमाधि दें | (६) चंद्रो से अधिक निर्मल, सूर्यो से अधिक प्रकाशकर, समुद्रों से उत्तम गांभीर्यवाले (उत्कृष्ट सागर स्वयंभूरमण जैसे गंभीर) और सिद्ध (जीवन्मुक्त सिद्ध अरिहंत) मुझे मोक्ष दें । (७)
६
देव-गुरुको पंचांग वंदन इच्छामि खमासमणो !
वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए,
मत्थएण वंदामि )
(१)
मैं इच्छता हूं हे क्षमाश्रमण ! वंदन करने के लिए, सब शक्ति लगाकर व दोष त्याग कर मस्तक नमाकर मैं वंदन करता हूं । (१)
(इस प्रकार बोलकर तीन बार खमासमण देने के बाद)
इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! चैत्यवंदन करूं ? 'इच्छं' (बोलकर बायां घूंटना खडा करें)
सकल कुशल वल्ली, पुष्करावर्त्त मेघो, दुरित तिमिर भानुः कल्प वृक्षोपमानः, भव जल निधि पोतः सर्व संपत्ति हेतु:, स भवतु सततं वः श्रेयसे शान्तिनाथः
सब कुशलोकी बेल समान, पुष्करावर्तके मेघ समान, अज्ञानरुप