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चैत्यवंदन विधि सहित
अंधकारमें सूर्य समान, कल्पवृक्ष समान, संसाररुप समुद्रमें नौका समान, सर्व संपत्तिके कारणरुप, ऐसे श्री शांतिनाथ आपके लिए कल्याणरुप हो। (१)
(इसके बाद फीर नीचे दिया गया या कोई और चैत्यवंदन बोले)
(श्री महावीर स्वामीका चैत्यवंदन) सिद्धारथ सुत वंदीओ,
त्रिशलानो जायो, क्षत्रियकुंडमां अवतर्यो, सुर नरपति गायो (१) मृगपति लंछन पाउले, सात हाथनी काय,
बहोंतेर वर्षनुं आयर्खा, वीर जिनेश्वर राय. (२) खिमाविजय जिनरायनो ए, उत्तम गुण अवदात,
सात बोलथी वर्णव्यो, 'पद्मविजय' विख्यात (३) स्वर्ग, पाताल और मनुष्यलोकमें रहे सर्व तीर्थो और उसमें रही हुई प्रतिमाओको वंदना
जं किंचि नामतित्थं,
सग्गे पायालि माणुसे लोए | जाई जिणबिम्बाई, ताई सव्वाई वंदामि || (१) स्वर्ग, पाताल (एवं) मनुष्यलोक में जो भी कोई तीर्थ है, (या वहां) जितने जिनबिम्ब है, उन सब को मैं वंदना करता हूं |(१)
श्री तीर्थंकर परमात्माकी उनके गुणो द्वारा स्तवना नमुत्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं (१) आइगराणं, तित्थयराणं, सयंसंबुद्धाणं (२)