________________
चैत्यवंदन विधि सहित
कित्तिय वंदिय महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा । आरुग्ग बोहिलाभं समाहिवर मुत्तमं दिंतु (६) चंदेसु निम्मलयरा आइच्चेसु अहियं पयासयरा । सागरवर गम्भीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु (७)
५
पंचास्तिकाय लोक (विश्व) के प्रकाशक, धर्मतीर्थ (शासन) के स्थापक, रागद्वेष जैसे आंतर शत्रुओं के विजेता, अष्ट प्रतिहार्यादि शोभा के योग्य चौबीसों सर्वज्ञों का कीर्तन करूंगा । (9)
श्री ऋषभदेव व श्री अजितनाथ को वंदन करता हूं । श्री सम्भवनाथ व श्री अभिनन्दन स्वामी को एवं श्री सुमतिनाथ को, श्री पद्मप्रभ स्वामी को, श्री सुपार्श्वनाथ को एवं श्री चन्द्रप्रभ जिनेंद्र को वंदन करता हूं । (२)
श्री सुविधिनाथ यानी श्री पुष्पदंत स्वामी को, श्री शीतलनाथ को, श्री श्रेयांसनाथ को, श्री वासुपूज्य स्वामी को, श्री विमलनाथ को, श्री अनन्तनाथ को, श्री धर्मनाथ को व श्री शान्तिनाथ को वदंन करता हूं । (३)
,
·
"
|
श्री कुंथुनाथ को श्री अरनाथ को व श्री मल्लिनाथ को श्री मुनिसुव्रत स्वामी तथा श्री नमिनाथ को वंदन करता हूं । श्री नेमनाथ को, श्री पार्श्वनाथ को श्री वर्धमान स्वामी (श्री महावीर स्वामी) को वंदन करता हूं । (४) इस प्रकार मुझसे अभिस्तुत (जिनकी स्तवना की गई है वे ) कर्मरज- रागादि मल को दूर किया है ( निर्मल) जिन्होंने वे, जरावस्था व मृत्यु से मुक्त (यानी - अक्षय) चौबीस भी (अर्थात् अन्य अनंत जिनवर के उपरान्त २४ जिनवर धर्मशासनस्थापकों मुझ पर अनुग्रह (प्रसन्न हो ) करें । (५)