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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
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मैं इच्छता हूं हे क्षमाश्रमण ! वंदन करने के लिए, सब शक्ति लगाकर व दोष त्याग कर मस्तक नमाकर मैं वंदन करता हूं | (१)
इच्छाकारेण संदिसह भगवन् !
सामायिक पार्यु । तहत्ति । हे भगवन् ! सामायिक पायें ।
सामायिक पारनेवाला साधक तहत्ति' कहकर आज्ञा शिरोमान्य करता है और बारबार सामायिक करनेकी भावना भावता मंगलाचरणमें नवकार गीनना है।
(फिर दाया हाथ चरवला या कटासणा स्थापित कर 'नवकार' और
‘सामाइय वयजुत्तो कहता है।)
पंचपरमेष्ठिको नमस्कार नमो अरिहंताणं,
नमो सिद्धाणं,
नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्वसाहूणं, एसो पंच नमुक्कारो, सव्व पावप्पणासणो,
मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं || (१) मैं नमस्कार करता हूं अरिहंतो को, मैं नमस्कार करता हूं सिद्धों को, मैं नमस्कार करता हूं आचार्यों को, मैं नमस्कार करता हूं उपाध्यायों को, मैं नमस्कार करता हूं लोक में (रहे) सर्व साधुओं को, यह पांचो को किया नमस्कार, समस्त (रागादि) पापों (या पापकर्मो) का अत्यन्त नाशक है, और सर्व मंगलों में श्रेष्ठ मंगल है |(१)