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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
(बायां चूंटना पडिलेहता) २३- वायुकाय, २४- वनस्पति काय,
२५- त्रसकायकी रक्षा करे.
देव-गुरुको पंचांग वंदन इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए,
र मत्थएण वंदामि (१) मैं इच्छता हूं हे क्षमाश्रमण ! वंदन करने के लिए, सब शक्ति लगाकर व दोष त्याग कर मस्तक नमाकर मैं वंदन करता हूं | (१)
इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सामायिक पाएं? यथा शक्ति.
हे भगवन् ! सामायिक पाएं ? यथाशक्ति
क्षण क्षण पाप करता जीव जब सामायिक में बैठते है तब त्रिकरण योगोसे निवृत्त होता है। इसलिए जब साधक सामायिक पारनेकी आज्ञा मांगते है तब गुरु फिरसे सामायिक करना फरमाते है। साधक अपनी शक्ति न होना जताकर सामायिक पारते है तब अंतमें गुरु आचारको न छोडनेका उपदेश देते है ।
देव-गुरुको पंचांग वंदन इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए, में मत्थएण वंदामि (१)