________________
३१२
श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
बारबार सामाइक करनेसे होते लाभ और उसमें लगे दोषकी क्षमायाचना
सामाइय वय जुत्तो, जाव मणे होइ नियम संजुत्तो
छिन्नइ असुहं कम्मं, समाइय जत्तिया वारा. (१) सामाइयंम्मि उ कए,
समणो इव सावओ हवइ जम्हा. एएण कारणेणं, बहुसो सामाइयं कुज्जा . (२) सामायिक विधि से लिया, विधि से पूर्ण किया, विधि करने में जो कोई अविधि हुई हो वह सभी
मन-वचन-काया से मिच्छा मि दुक्कडं (३) दस मन के, दस वचन के, बारह काया के इन बत्तीस दोषों में से जो कोई दोष लगा हो, उन सबका मन-वचन-काया से मिच्छामि दुक्कडं (४)
जहाँ तक मन सामायिक व्रत के नियम से युक्त है और जितनी बार सामायिक करता है, अशुभ कर्मों का नाश करता है . (१) सामायिक करने पर तो श्रावक श्रमण (साधु) के समान होता है, इस लिये सामायिक अनेक बार करना चाहिये. (२) सामायिक विधि से लिया, विधि से पूर्ण किया परन्तु विधि करते समय कोई अविधि हुई हो, तो मन-वचन-काया से मेरे वे सब दुष्कृत मिथ्या हों. (३)
मन के दस, वचन के दस, और काया के बारह - इन बतीस दोषों में से जो कोई दोष लगा हो, मेरे वे सब दोषो मन-वचन-काया से मिथ्या हों. (४)