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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
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प्रवृत्ति, सद्गुरुओं का योग और उनकी आज्ञा के पालन की प्रवृत्ति, पूरी भव परंपरा में अखंडित रूप से मुझे प्राप्त हो (२)
हे वीतराग ! आपके शास्त्र में यद्यपि निदानबंधन निषेध किया गया है, तब भी भवो भव मुझे आपकी चरणसेवा प्राप्त हो. (३) हे नाथ ! आपको प्रणाम करने से दुःख का नाश, कर्म का नाश, समाधि मरण और बोधि लाभ मुझे प्राप्त हो. (४)
सर्व मंगलों में मंगल, सर्व कल्याणों का कारण, सर्व धर्मों में श्रेष्ठ ऐसा जैन शासन जयवंत है . (५)
इस सूत्र की पहेली दो गाथाओंकी रचना श्री गणधर भगवंतने की है । और बादमें बाकी कि तीन गाथाकी रचना हुई । इसलिए पहली दो गाथाओंमे हाथ मुक्ताशुक्ति मुद्रामें रखना है और अंतिम तीन गाथाओंमें हाथ योगमुद्रामें रखता है ।
देव - गुरुको पंचांग वंदन इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए, मत्थएण वंदामि (9)
मैं इच्छता हूं हे क्षमाश्रमण ! वंदन करने के लिए, सब शक्ति लगाकर व दोष त्याग कर मस्तक नमाकर मैं वंदन करता हूं । (१)
मुहपत्ति पडिलेहणकी परवानगी
इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! मुहपत्ति पडिलेहुं ? इच्छं.
भगवंत, सामायिक मुहपत्ति पडिलेहणकी आज्ञा दिजिए । आज्ञा मान्य है ।