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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
अस्मिश्च भूमंडल आयतन निवासि साधु, साध्वी, श्रावक श्राविकाणां
रोगोपसर्ग व्याधि दुःख दुर्भिक्ष दौर्मनस्यो पशमनाय शांतिर्भवतु II (११)
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और इस भूमंडलपर अपने अपने स्थान पर रहे हुए साधु, साध्वी श्रावक और श्राविकाओंको रोग, उपसर्ग, व्याधि, दुःख, दुष्काल और विषादके उपशमन द्वारा शान्ति हो । (११)
शांति करनेवाले श्री शांतिनाथ प्रभुका स्मरण
ॐ तुष्टि, पुष्टि, ऋद्धि, वृद्धि, मांगल्योत्सवा : सदा प्रादुर्भूतानि पापानि शाम्यंतु दुरितानि; शत्रवः पराङ्मुखा, भवंतु स्वाहा || (१२)
ॐ आपको सदा तुष्टि हो, पुष्टि हो, ऋद्धि मिले, वृद्धि मिले, मांगल्यकी प्राप्ति हो और आपका निरन्तर अभ्युदय हो । आपके प्रादुर्भूत पापकर्म नष्ट हों, भय-कठिनाइयाँ शान्त हों तथा आपका शत्रुवर्ग विमुख बने । स्वाहा । (१२)
शांतिकर श्री शांतिनाथ प्रभुका स्मरण
श्रीमते शांतिनाथाय नमः शांति विधायिने; त्रैलोकय स्यामराधीश - मुकुटाभ्य चिंतांधये (१) (१३) शांतिः शांतिकरः श्रीमान् शांतिं दिशतु मे गुरुः शांति रेव सदा तेषां येषां शांतिर्ग्रडे ग्रहे (२) (१४) तीन लोकके प्राणियोंको शान्ति करनेवाले और देवेन्द्रोंके मुकुटोंसे पूजित चरणवाले, पूज्य श्रीशान्तिनाथ भगवान्को नमस्कार हो । (१) (१३)