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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
ॐ आचार्य; उपाध्याय आदि चार प्रकारके श्री श्रमण-संघमें शान्ति हो, तुष्टि हो, पुष्टि हो । (८)
विविध देवताओंकी प्रसन्नता
ॐ ग्रहाश्चंद्र, सूर्यांगारक, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनैश्वर, राहु, केतु, सहिताः सलोकपाला : सोम, यम, वरुण, कुबेर, वासवादित्य, स्कंद विनायकोपेता
ये चान्येपि ग्राम नगर क्षेत्र देवता दयस्ते सर्वे प्रीयंतां, प्रीयंतां, अक्षीणकोश कोष्ठागारा नरपतयश्च भवंतु स्वाहा II (९)
ॐ चन्द्र, सूर्य, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु आदि नौ ग्रह; लोकपाल-सोम, यम, वरुण, (और) कुबेर, तथा, इन्द्र, सूर्य, कार्तिकेय, विनायक आदि देव एवं ग्रामदेवता, नगरदेवता, क्षेत्रदेवता आदि दूसरे भी जो देव हों, वे सब प्रसन्न हों, प्रसन्न हों और आपको अक्षय कोश और कोठारवाले राजा प्राप्त हों । स्वाहा । (९)
परिवारमें आनंद-प्रमोद
ॐ पुत्र, मित्र, भातृ, कलत्र, सुहृद्, स्वजन, संबंधि
बंधुवर्ग सहिताः नित्यं चामोद प्रमोद कारिणः भवंतु स्वाहा II (१०)
ॐ आप पुत्र (पुत्री), मित्र, भाई (बहिन), स्त्री, हितैषी, स्वजातीय, स्नेहीजन और सम्बन्धी परिवारवालोंके सहित आनन्द-प्रमोद करनेवालें हों - सुखी हों । (१०)