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बोलना कि....अर्थ, तत्त्व करी सद्दहुं. चित्र नं - २
सूत्र एवं अर्थ दोनो को तत्त्व रुप अर्थात् सत्य समान समझता हूँ एवं उसकी प्रतीति करके, उसके पर श्रद्धा करता हुँ । इस समय मुहपत्तिकी दुसरी बाजु प्रतिलेखना होती है । (अर्थात् कि मुहपत्तिकी दुसरी बाजु का निरीक्षण किया जाता है ।)
३) ६- उर्ध्व-पप्फोडा (= पुरिम) पडिलेहण विधि
३- दूसरे पहलूकी द्दष्टि पडिलेहना करके उसे उर्ध्व अर्थात् तीच्छ विस्तृत कि हुई मुहपत्तिका बाये हाथ कि ओर का हिस्सा तीनबार झटको, पहला 'तीन उर्ध्व पप्फोडा (पुरिम)' कहा जाता है । मनमें बोलो की .......
२- सम्यकत्व मोहनीय, ३- मिश्र मोहनीय, ४- मिथ्यात्व मोहनीय परिहरुं । चित्र नं - ३
४) तत्पश्चात् (द्दष्टि पडिलèणना में दर्शाये अनुसार) मुहपत्तिका दूसरा पहलू बदलकर एवं द्दष्टिसे जाँचकर दाये हाथ वाला हिस्सा तीन बार झटको या तो हिलाओ उसे दूसरा 'तीन ऊर्ध्व पप्फोडा (पुरिम) कहा जाता है, उस वक्त मनमें बोलो कि ....
५- कामराग, ६- स्नेहराग, ७- द्दष्टिराग परिहरूं । चित्र नं ४ (तीनो प्रकारके राग झटक देने समान है। इसलिए मुहपत्तिको यहाँ तीन बार झटका जाता है ।)
इस तरह पहले तीन एवं बादमें तीन, इस तरह कुल मिलाकर छह ऊर्ध्वपप्फोडा (पुरिम = प्रस्फोटक) कहा जाता है ।
५) मुहपत्तिका मध्य भाग बाये हाथ पर रखकर, बीचवाली घडी पकडकर दुगुनी करो। (यहाँसे मुहपत्तिको समेटना आरंभ होता है ।)