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मुहपत्ति पडिलेहण करते वक्त मनमें बोलने-सोचने के २५ बोल
गुरुवंदन करनेवाला श्रावक प्रथम संडासापूर्वक खमासमण देते हुए गुरुकी आज्ञा माँगकर, मुहपत्तिका पडिलहेण, उत्कटिक आसनमें (दोनो पैरों के पंजोंके आधार पर खड़े पैरों पर बैठना) बैठकर करे। जिसमें मुहपत्तिके २५ बोल = (१) द्दष्टि पडिलेहणा + (६) उर्ध्व पप्फोडा (पुरिम) + (९) अक्खोडा + (९) पक्खोडा = २५
(१) द्दष्टिपडिलेहणा : मुहपत्तिको खोलकर नजरों के सामने तीर्थी विस्तार करके, सामनेवाले पहलु को नजरोंसे बराबर जाँचे । उसमें अगर कोई जीव-जंतु दिखाई दे तो उसे जयणा के साथ उचित स्थान पर रख दे | उसके बाद मनमें बोले और उसके अर्थ का विचार करे।
१) सूत्र,-चित्र नं-१ (इस वक्त मुहपत्तिकी एक ओर की प्रतिलेखना होती है । अर्थात् द्दष्टिसे ओर उसके बाद में बोल बोले और उसके अर्थका विचार करे)
२) तत्पश्चात् मुहपत्तिका दोनो हाथोंसे पकड़ा हुआ, उपरवाला हिस्सा, बाये हाथ पर (दाये हाथकी मददसे) रखकर, दुसरा पहलु इस प्रकार बदलना चाहिए कि पहले बाये हाथमें पकडा हुआ, दबाया हुआ कोना दाये हाथमें आये मतलब दूसरा पहलुं नजरोंके सामने आ जाये, उसके बाद इस नजरों के सामने बने हुए पहलु को भी पहले पहलु की तरह नजरों से जाँचना चाहिए । इस प्रकार मुहपत्ति के दो पहलुओं को नजरों से जाँचकर ‘दृष्टिपडिलेहणा' करनी चाहिए | उस वक्त मनमें