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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
चूला वेलं गुरुगम मणी संकुलं दूर पारं, सारं वीरागम जल निधिं सादरं साधु सेवे. (३)
__ श्रुतदेवी- सरस्वतीदेवीकी स्तुति । आमूला लोल धूली बहुल परि
मला लीढ लोलालि माला झंकारा राव सारा मल दल कमला गार भूमी निवासे !
छाया संभार सारे ! वर कमल करे ! तार हाराभिरामे ! वाणी संदोह देहे !
भव विरह वरं देहि मे देवि ! सारम् . (४) संसार रूपी दावानल के ताप को शांत करने में जल समान, प्रगाढ मोह रूपी धूल को दूर करने में वायु समान, माया रूपी पृथ्वी को चीरने में तीक्ष्ण हल समान और मेरु पर्वत समान स्थिर श्री महावीर स्वामी को मैं वंदन करता हूँ | (१) । भाव पूर्वक नमन करने वाले सुरेंद्र, दानवेंद्र और नरेंद्रो के मुकुट में स्थित चंचल कमल श्रेणियों से पूजित और नमन करने वाले लोगों के मनोवांछित पूर्ण करने वाले जिनेश्वरों के उन चरणोंमें मैं श्रद्धा पूर्वक नमन करता हूँ | (२) महावीर स्वामी का आगमसमुद्र जो ज्ञानसे गंभीर है, सुंदर पदरचनारुपी जल समूहसे मनोहर है, जीवदया संबंधी सूक्ष्मविचारोरुप भरपूर लहरो से जिसमे प्रवेश दुष्कर है, चूलिकारुप भरतीवाला है, उत्तम आलापकरुपी रत्नोसे व्याप्त और अति कठिनतापूर्वक पार पाये जानेवाले है, उसकी मैं आदरपूर्वक उपासना करता हूँ | (३)