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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
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वाला है. मनुष्य और तिर्यंच गति में भी जीव दुःख और दरिद्रता को प्राप्त नहीं करते हैं (३) चिंतामणि रत्न और कल्प वृक्ष से भी अधिक शक्तिशाली ऐसे आपके सम्यक्त्व की प्राप्ति होने पर जीव सरलता से अजरामर (मुक्ति) पद को प्राप्त करते हैं (४) हे महायशस्विन् ! मैंने इस प्रकार भक्ति से भरपूर हृदय से आपकी स्तुति की है, इसलिये हे देव ! जिनेश्वरों में चंद्र समान, हे श्री पार्श्वनाथ ! भवो भव बोधि जिनधर्म को प्रदान कीजिए (५)
जब २२०० साल पहले श्रीसंघ पर व्यंतरदेव द्वारा उपद्रव हुआ था तब अंतिम पूर्वधर श्री आर्यभद्रबाहु स्वामीजीने इस सात गाथाके स्तोत्रकी रचना की थी । विषम कालमें वे मंत्राक्षरो का दुरुपयोग होने से शासनरक्षक अधिष्ठायक देवकी विनंतीसे दो गाथाका संहर किया है |अभी यह सूत्र पांच गाथा का है।
श्री महावीरस्वामीकी स्तुति संसार दावानल दाह नीरं, संमोह धूली हरणे समीरं. माया रसा दारण सार सीरं, नमामि वीरं गिरि सार धीर. (१)
सर्व तीर्थंकर भगवंतोकी स्तुति भावा वनाम सुर दानव मानवेन, चूला विलोल कमला वलि मालितानि. संपूरिता भिनत लोक समीहितानि, कामं नमामि जिनराज पदानि तानि. (२)
आगम-सिद्धांतकी स्तुति बोधागाधं सुपद पदवी नीर पूराभिरामं, जीवा हिंसा विरल लहरी संग-मागाह-देहं