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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
को, मैं नमस्कार करता हूं लोक में (रहे) सर्व साधुओं को, यह पांचो को किया नमस्कार, समस्त (रागादि) पापों (या पापकर्मो) का अत्यन्त नाशक है, और सर्व मंगलों में श्रेष्ठ मंगल है |(१)
धर्ममार्गमें अंतरायभूत विघ्नोके निवारणकी प्रार्थना
उवसग्गहरं पास,
पासं वदामि कम्म घण मुक्कं, विसहर विस निन्नासं, मंगल कल्लाण आवासं (१)
विसहर फुलिंग मंतं,
कंठे धारेइ जो सया मणुओ, तस्स गह रोग मारी, दुट्ठ जरा जंति उवसामं (२) चिट्ठउ दूरे मंतो, तुज्झ पणामो वि बहुफलो होइ, नर तिरिएसु वि जीवा, पावंति न दुक्ख दोगच्चं (३) तुह सम्मत्ते लद्धे, चिंतामणि कप्पपाय वब्भहिए,
पावंति अविग्घेणं, जीवा अयरामरं ठाणं (४) इअ संथुओ महायस ! भत्तिभर निब्भरेण हिअएण, ता देव ! दिज्ज बोहिं, भवे भवे पास ! जिण चंद ! (५) उपद्रवों को दूर करने वाले पार्श्वयक्ष सहित, घातीकर्मोके समूह से मुक्त, सर्प के विष को नाश करने वाले, मंगल और कल्याण के गृहरूप श्री पार्श्वनाथ भगवान को मैं वंदन करता हूँ (१) जो मनुष्य विसहर - फुलिंग मंत्र को नित्य स्मरण करता है, उसके ग्रहदोष,महारोग, महामारी और विषम ज्वर शांत हो जाते हैं (२) मंत्र तो दूर रहे, आपको किया हुआ प्रणाम भी बहुत फल देने