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________________ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित आरुग्ग बोहिलाभं समाहिवर मुत्तमं दिंतु (६) चंदेसु निम्मलयरा आइच्चेसु अहियं पयासयरा । सागरवर गम्भीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु (७) २६७ पंचास्तिकाय लोक (विश्व) के प्रकाशक, धर्मतीर्थ (शासन) के स्थापक, रागद्वेष जैसे आंतर शत्रुओं के विजेता, अष्ट प्रतिहार्यादि शोभा के योग्य चौबीसों सर्वज्ञों का कीर्तन करूंगा । (१) श्री ऋषभदेव व श्री अजितनाथ को वंदन करता हूं । श्री सम्भवनाथ व श्री अभिनन्दन स्वामी को एवं श्री सुमतिनाथ को, श्री पद्मप्रभ स्वामी को, श्री सुपार्श्वनाथ को एवं श्री चन्द्रप्रभ जिनेंद्र को वंदन करता हूं । , (२) , श्री सुविधिनाथ यानी श्री पुष्पदंत स्वामी को श्री शीतलनाथ को, श्री श्रेयांसनाथ को, श्री वासुपूज्य स्वामी को, श्री विमलनाथ को, श्री अनन्तनाथ को, श्री धर्मनाथ को व श्री शान्तिनाथ को वदंन करता हूं । (३) श्री कुंथुनाथ को, श्री अरनाथ को व श्री मल्लिनाथ को, श्री मुनिसुव्रत स्वामी तथा श्री नमिनाथ को वंदन करता हूं । श्री मनाथ को श्री पार्श्वनाथ को श्री वर्धमान स्वामी (श्री महावीर " , स्वामी) को वंदन करता हूं । (४) इस प्रकार मुझसे अभिस्तुत (जिनकी स्तवना की गई है वे ) कर्मरज- रागादि मल को दूर किया है (निर्मल) जिन्होंने वे, जरावस्था व मृत्यु से मुक्त (यानी - अक्षय) चौबीस भी ( अर्थात् अन्य अनंत जिनवर के उपरान्त २४ जिनवर धर्मशासनस्थापकों मुझ पर अनुग्रह (प्रसन्न हो) करें । (५)
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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