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________________ २६८ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित कीर्तन, वंदन, पूजन किये गए ऐसे, व लोक (सुर असुर आदि सिद्धजन के समूह) में जो श्रेष्ठ सिद्ध हैं वे मुझे भव-आरोग्य (मोक्ष) के लिए बोधिलाभ एवं उत्तम भावसमाधि दें |(६) । चंद्रो से अधिक निर्मल, सूर्यो से अधिक प्रकाशकर, समुद्रों से उत्तम गांभीर्यवाले (उत्कृष्ट सागर स्वयंभूरमण जैसे गंभीर) और सिद्ध (जीवन्मुक्त सिद्ध अरिहंत) मुझे मोक्ष दें I७) देव-गुरुको पंचांग वंदन इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए, Hो मत्थएण वंदामि (१) मैं इच्छता हूं हे क्षमाश्रमण ! वंदन करने के लिए, सब शक्ति लगाकर व दोष त्याग कर मस्तक नमाकर मैं वंदन करता हूं | (१) इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सज्झाय संदिसाई ? 'इच्छं' हे भगवन् ! सज्झाय भणुं ? आज्ञा मान्य है। सूत्र किस तरह बोलने चाहिए? दोनों हाथ जोड़कर,मुहपत्ति मुखके आगे रखकर,चंचलता छोडकर,स्थापनाजीके सामने नज़र रखकर, स्थिरभावसे, शुद्ध उच्चारपूर्वक, मधुर और स्पष्ट स्वरसे, धीरे धीरे, भावपूर्वक , अर्थ चिन्तनसहित, गाथा गाथा पर रुक रुककर प्रतिक्रमणके सूत्र बोलने चाहिए । खमासमण केसे देना चाहिए? खमासमण मतलब पंचांग प्रणिपात. जिसमें पांचो अंग-दो हाथ, दो पैर और मस्तक जमीन तक स्पर्श होने चाहिए।चरवलावालोने खमासमण पूर्णरुपसे खडे होकर देना चाहिए ।
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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