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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
(सिवा), मुझे कायोत्सर्ग (काया के त्याग से युक्त ध्यान) हो, वह भी भग्न नहीं, खण्डित नहीं ऐसा कायोत्सर्ग हो । जहाँ तक (नमो अरिहंताणं बोल) अरिहंत भगवंतों को नमस्कार करने द्वारा (कायोत्सर्ग) न पारूं (पूर्ण कर छोडूं), तब तक स्थिरता, मौन व ध्यान रखकर अपनी काया को वोसिराता हूं (काया को मौन व ध्यान के साथ खडी अवस्था में छोड़ देता हूं)।
(अब चार लोगस्स 'चंदेसु निम्मलयरा' तक अथवा सोलह नवकारका काउस्सग्ग करना।)
(बादमें प्रगट लोगस्स कहना)
२४ तीर्थंकरोके नाम स्मरणकी स्तुति
लोगस्स उज्जोअगरे; Hit धम्म तित्थयरे जिणे।
अरिहंते कित्तइस्सं चउवीसं पि केवली (१) उसभ, मजिअं च वंदे, संभव, मभिणंदणं च सुमई च;
पउमप्पह, सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे (२) सुविहिं च पुष्फदंतं, सीयल, सिज्जंस, वासुपूज्जं च।
विमल, मणंतं च जिणं, धम्म, संतिं च वंदामि (३) कुंथु, अरं च मल्लिं वंदे मुणिसुव्वयं, नमिजिणं च।
वंदामि रिट्ठनेमि, पासं तह वद्धमाणं च (४) एवं मए अभिथुआ विहुय रयमला पहीण जर मरणा।
चउवीसं पि जिणवरा, तित्थयरा मे पसीयंतु (५) कित्तिय वंदिय महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा |