SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 313
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५८ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित सुरवर रइगुण पंडिअयाहिं । (३०) भासुरयं __(देवांगनाओने की श्री शांतिनाथ प्रभुकी स्तुति) वंससद्द तंतिताल मेलिए तिउक्खरा भिराम सद्द मीसए कए अ, सुइ समाणणे अ सुद्ध सज्जगीय पाय जाल घंटिआहिं । वलय मेहला कलाव नेउराभिराम सद्दमीसए कए अ, देव नट्टिआहिं हावभाव विब्भम-प्पगारएहिं, नच्चिऊण अंगहारएहिं वंदिया य जस्स ते सुविक्कमा कमा, तयं तिलोय सव्वसत्त संतिकारयं पसंत सव्व पाव दोसमेस हं, नमामि संतिमुत्तमं जिणं । (३१) नारायओ देवोंको उत्तम प्रकारकी प्रीति उत्पन्न करनेमें कुशल ऐसी स्वर्गकी सुन्दरियाँ भक्तिवश एकत्रित होती हैं । उनमेंसे कुछ बंसी आदि शुषिर वाद्य बजाती हैं, कुछ ताल आदि धन वाद्य बजाती हैं और कुछ नृत्य करती जाती हैं और पाँवमें पहने हुए पायजेबके घुघरुओंके आवाजको कंकण, मेखला-कलाप और नूपुरकी ध्वनिमें मिलाती जाती हैं | उस समय जिनके मुक्ति देने योग्य, जगत्में उत्तम शासन करनेवाले तथा सुन्दर पराक्रमशाली चरण, पहले ऋषि और देवताओंके समूहसे स्तुत हैं-वन्दित हैं, बादमें देवियों द्वारा प्रणिधानपूर्वक प्रणाम किये जाते हैं और
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy