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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
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आकाशमें विचरण करनेवाली, मनोहर हंसी जैसी सुन्दर गतिसे चलनेवाली, पुष्ट नितम्ब और भरावदार स्तनोंसे शोभित, कलायुक्त विकसित कमलपत्रके समान नयनोंवाली, पुष्ट और अन्तर-रहित स्तनोंके भारसे अधिक झुकी हुई गात्र लताओंवाली, रत्न और सुवर्णकी झूलती हुई मेखलाओंसे शोभायमान नितम्ब-प्रदेशवाली, उत्तम प्रकारके करधनीवाले नूपुर और टिपलीवाले कंकण आदि विविध आभूषण धारण करनेवाली, प्रीति उत्पन्न करनेवाली, चतुरोंके मनका हरण करनेवाली, सुन्दर दर्शनवाली, जिन-चरणोंको नमन करनेके लिये तत्पर, आँखमें काजल, ललाट पर तिलक और स्तनमण्डल पर पत्रलेखा तथा विविध प्रकारके बड़े आभूषणोंवाली, देदीप्यमान, प्रमाणोपेत अंगवाली अथवा विविध नाट्य करने के लिये सज्जित तथा भक्ति-पूर्ण वन्दन करनेको आयी हुई देवांगनाओंने अपने ललाटोंसे जिनके सम्यक् पराक्रमवाले चरणोंको वन्दन किया है तथा बार-बार वन्दन किया है, ऐसे मोहको सर्वथा जीतनेवाले, सर्व क्लेशोंका नाश करनेवाले जिनेश्वर श्री अजितनाथको मन, वचन और कायासे प्रणिधानपूर्वक मैं नमस्कार करता हूँ | (२६-२७-२८-२९)
थुअ-वंदिअयस्सा, रिसिगण देव गणेहिं तो देववहुहिं, पयओ पणमिअस्सा जस्स जगुत्तम सासणअस्सा, भत्ति वसाग पिंडिअयाहिं | देव वरच्छरसा बहुआहिं,