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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
समण-संघ-परिवंदिअं |(२०) सुमुहं
अभयं अणह, अरयं अरुयं । अजिअं अजिअं, पयओ पणमे | (२१) विज्जुविलसिअं निश्चलतापूर्वक भक्तिसे नमे हुए तथा मस्तक पर दोनों हाथ जोड़े हुए ऋषियोंके समूहसे अच्छी तरह स्तुति किये गये; इन्द्र कुबेर आदि लोकपालदेव और चक्रवर्तियोंसे अनेक बार स्तुत, वन्दित और पूजित; तपसे तत्काल उदित हुए शरदऋतुके सूर्यसे भी अत्याधिक कान्तिवाले; आकाशमें विचरण करते करते एकत्रित हुए चारण मुनियोंके मस्तक द्वारा वन्दित, असुरकुमार, सुपर्णकुमार आदि भवनपति देवों द्वारा उत्कृष्ट प्रणाम किये हुए, किन्नर और महोरग आदि व्यन्तर देवोंसे पूजित; शत-कोटि (एक-अरब) वैमानिक देवोंसे स्तुति किये हुए, श्रमण-प्रधान चतुर्विध संघद्वारा विधिपूर्वक वन्दित, भय-रहित, पाप-रहित, कर्म-रहित, रोग-रहित और किसीसे भी पराजित नहीं होनेवाले देवाधिदेव श्री अजितनाथको मैं मन, वचन और कायासे प्रणिधानपूर्वक प्रणाम करता हूँ | (१९-२०-२१)
देवकृत भक्ति वर्णनसे श्री शांतिनाथकी स्तुति आगया वरविमाण-दिव्वकणग-रहतुरय-पहकर
सएहिं हुलिअं, ससंभमोअरण खुभिय लुलिय चल कुंडलं गय
तिरीड सोहंत मउलि माला | (२२) वेङ्कओ जं सुरसंधा सासुरसंधा वेरविउत्ता भत्तिसुजुत्ता,
आयर भूसिय संभम पिंडिअ,