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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
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सुङ सुविम्हिअ सव्व बलोघा।
उत्तम कंचण रयण परूविअ भासुर भूसण भासुरिअंगा, गाय समोणय भत्तिवसागय पंजलि पेसिय सीसपणामा । (२३) रयणमाला
वंदिऊण थोऊण तो जिणं, तिगुणमेव य पुणो पयाहिणं।
पणमिऊण य जिणं सुरासुरा, पमुइया सभवणाई तो गया । (२४) खित्तयं
तं महामुणि महंपि पंजलि, राग दोस भय मोह वज्जियं ।
देव दाणव नरिंद वंदिअं,
संतिमुत्तमं महातवं नमे | (२५) खित्तयं सैकड़ों श्रेष्ठ विमान, सैकड़ों दिव्य-मनोहर सुवर्णमय रथ और सैकड़ों घोड़ोंके समूह पर सवार होकर जो शीघ्र आये हुए हैं, और वेगपूर्वक नीचे उतरनेके कारण जिनके कानके कुण्डल, भुजबन्ध
और मुकुट क्षोभको प्राप्त होकर डोल रहे हैं और चंचल बने हैं; तथा जिन्होंने मस्तक पर विशिष्ठ प्रकारकी सुंदर मालाएँ धारण कि है, जो (परस्पर) वैर-वृत्तिसे मुक्त और पूर्ण भक्तिवाले हैं; जो शीघ्रतासे एकत्रित हुए हैं और बहुत आश्चर्यान्वित हैं तथा सकल-सैन्य परिवारसे युक्त हैं; जिनके अंग उत्तम जातिके सुवर्ण और रत्नोंसे बने हुए तेजस्वी अलंकारोंसे देदीप्यमान हैं, जिनके गात्र भक्तिभावसे नमे हुए हैं तथा दोनों हाथ मस्तक पर जोड़कर