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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
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निर्मल-चन्द्रकलासे भी अधिक सौम्य, आवरण-रहित सूर्यके किरणोंसे भी अधिक तेजवाले, इन्द्रोंके समूहसे भी अधिक रूपवान्, मेरु-पर्वतसे भी अधिक दृढ़तावाले तथा निरन्तर आत्म-बलमें अजित, शारीरिक बलमें भी अजित और तप संयममें भी अजित, ऐसे श्री अजितजिनकी मैं स्तुति करता हूँ | (१५-१६) हे युक्त वचन बोलने में उत्तम ! शरदऋतुका पूर्णचन्द्र आह्लादकता आदि गुणोंसे जिनकी बराबरी नहीं कर सकता, शरद्ऋतुके पूर्ण किरणों से प्रकाशित होनेवाला सूर्यको तेज आदि गुणोंसे जिनकी बराबरी नहीं कर सकता, इन्द्रके, रूप आदि गुणोंसे जिनकी बराबरी नहीं कर सकता, मेरु-पर्वतकी दृढ़ता आदि गुणोंसे जिनकी बराबरी नहीं कर सकता, जो श्रेष्ठ तीर्थंके प्रवर्तक हैं, मोहनीय आदि कर्मोसे रहित हैं, प्राज्ञ पुरुषोंसे स्तुत और पूजित हैं, जो कलहकी कालिमासे रहित हैं, जो शान्ति और शुभ को फैलानेवाले हैं, ऐसे महामुनि श्री शान्तिनाथकी शरणको मैं मन, वचन और कायाके प्रणिधान-पूर्वक अंगीकार करता हूँ | (१७-१८)
देवकृत भक्ति वर्णनसे श्री अजितनाथकी स्तुति विणओणय सिर रइ अंजलि
रिसि गण संथुअंथिमिअं, विबुहाहिव-धणवइ-नरवइ-थुअ-महियच्चिअं बहुसो। अइ रुग्गय-सरय-दिवायर-समहिय-सप्पभं तवसा,
गयणं गण-वियरण-समुइयचारण-वंदिय सिरसा | (१५) किसलयमाला असुर-गरुल-परिवंदिअं, किन्नरोरग-नमंसि |
देव-कोडि-सय-संथुअं,