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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
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एवमाइ एहिं आगारेहिं, अभग्गो अविराहिओ,
हुज्ज मे काउस्सग्गो (३) जाव अरिहंताणं भगवंताणं, नमुक्कारेणं न पारेमि (४) ताव कार्य, ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं, अप्पाणं,
___वोसिरामि (५) श्वास लेना, श्वास छोडना, खाँसी आना, छींक आना, जम्हाई आना, डकार आना, अधोवायु छूटना, चक्कर आना, पित्तविकार से मूर्छा आना, सूक्ष्म अंग-संचार होना, सूक्ष्म कफ संचार होना, सूक्ष्म दृष्टि-संचार होना, इत्यादि अपवाद के सिवा, मुझे कायोत्सर्ग (काया के त्याग से युक्त ध्यान) हो, वह भी भग्न नहीं, खण्डित नहीं ऐसा कायोत्सर्ग हो । जहाँ तक (नमो अरिहंताणं बोल) अरिहंत भगवंतों को नमस्कार करने द्वारा (कायोत्सर्ग) न पारूं (पूर्ण कर छोडूं), तब तक स्थिरता, मौन व ध्यान रखकर अपनी काया को वोसिराता हूं (काया को मौन व ध्यान के साथ खडी अवस्था में छोड़ देता हूं)।
( श्रुतकी अधिष्ठायिका श्रुतदेवी सरस्वतीका काउस्सग्ग ) । ( एक नवकारका काउस्सग्ग कर 'नमोर्हत' कहके यह स्तुति कहे।)
पंचपरमेष्ठिको नमस्कार नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, का नमो आयरियाणं,
नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्वसाहूणं, एसो पंच नमुक्कारो, सव्व पावप्पणासणो, मंगलाणं च सव्वेसिं, पढम हवइ मंगलं || (१)