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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
मैं नमस्कार करता हूं अरिहंतो को, मैं नमस्कार करता हूं सिद्धों को, मैं नमस्कार करता हूं आचार्यों को, मैं नमस्कार करता हूं उपाध्यायों को, मैं नमस्कार करता हूं लोक में (रहे) सर्व साधुओं को, यह पांचो को किया नमस्कार, समस्त (रागादि) पापों (या पापकर्मों) का अत्यन्त नाशक है, और सर्व मंगलों में श्रेष्ठ मंगल है | (9)
पंचपरमेष्ठिको नमस्कार
नमोर्हत् सिद्धा-चार्यो- पाध्याय सर्व साधुभ्यः ।
(यह सूत्र स्त्रीयां कभी भी नहीं बोले )
अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और सर्व साधुओं को नमस्कार हो ।
भुवनदेवताकी थोय
ज्ञानादि गुण युतानां,
नित्यं स्वाध्याय संयम रतानाम् । विदधातु भवनदेवी,
शिवं सदा सर्व-साधूनाम् II (9)
ज्ञानादि गुणों से युक्त, नित्य स्वाध्याय और संयम में लीन ऐसे सर्व साधुओं का भवन देवी सदा कल्याण करे । (१)
('नमो अरिहंताणं' कहके काउस्सग्ग पारना)
खित्त देवया करेमि काउस्सग्गं.
क्षेत्रदेवतानी आराधन निमित्ते काउस्सग्ग करता हुं ।