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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
जिनवरो (केवलज्ञानी) में प्रधान वर्धमान स्वामी को (सामर्थ्ययोग की कक्षाका किया गया) एक नमस्कार भी संसारसमुद्र से पुरुष या स्त्री को तार देता है । (३) उज्जयन्त (गिरनार) गिरि के शिखर पर जिनकी दीक्षाकेवलज्ञान-निर्वाण हुए, उन धर्म-चक्रवर्ती श्री नेमनाथ स्वामी को मैं नमस्कार करता हूं |(४) (अष्टापद पर) ४-८-१०-२, (इस क्रम से) वंदन किए गए चौबीस जिनेश्वर भगवंत, परमार्थ से (वास्तव में) इष्ट पूर्ण हो गए हैं (कृतकृत्य) ऐसे सिद्ध भगवंत मुझे मोक्ष दें |(५)
( यह जिस भवनमें साधु-साध्वी रहते है, इस भवनकी अधिष्ठायिक देवी और उस भवनके देवी देवताओंकी शांतिके लिए दो काउस्सग्ग करना है।
चरवलावाले खडे होकर काउस्सग्ग करे।)
भुवणदेवयाओ करेमि काउस्सग्गं, भुवनदेवताकी आराधन निमित्ते
काउस्सग्ग करता हुं । काउस्सग्गके १६ आगार (छूट)का वर्णन अन्नत्थ ऊससिएणं, नीससिएणं,
खासिएणं, छीएणं, जंभाइएणं, 2 उड्डएणं, वायनिसग्गेणं,
भमलीए, पित्तमुच्छाए (१) सुहुमेहिं अंग संचालेहिं, सुहुमेहिं खेल संचालहिं,
सुहुमेहिं दिहि संचालहिं, (२)