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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
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सम्यग्दृष्टि देव मुझे समाधि और बोधि (परभवमें जिनधर्म की प्राप्ति) प्रदान करें | (४७)
(किस कारणसे प्रतिक्रमण करना)
पडिसिद्धाणं करणे, किच्चाण मकरणे अ पडिक्कमण असद्दहणे अ तहा, विवरीअ परूवणाए अ | (४८) (जिनेश्वर भगवंतों ने) निषेध किये हुए कृत्यों का आचरण करने से, करने योग्य कृत्यों का आचरण नहीं करने से, (प्रभुवचन पर) अश्रद्धा करने से तथा जिनेश्वर देव के उपदेश से विपरीत प्ररूपणा करने से प्रतिक्रमण करना आवश्यक है |(४८)
(सर्व जीवको क्षमापना) खामेमि सव्व जीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे; मित्ती मे सव्व भूएसु, वेरं मज्झ न केणइ । (४९) सब जीवों को मै खमाता हुँ, सब जीवों मुझे क्षमा करें, मेरी सब जीवों के साथ मित्रता (मैत्रीभाव) है तथा किसी के साथ वैर भाव नहीं है | (४९)
एवमहं आलोइअ, निंदिअ गरहिअ दुगंछिअं सम्म तिविहेण पडिक्कतो, वंदामि जिणे चउव्वीसं । (५०) इस तरह सम्यक प्रकार से अतिचारों की आलोचना-निंदा-गर्दा
और (पापकारी मेरी आत्मा को धिक्कार हो इस तरह) जुगुप्सा करके, मैं मन, वचन और काया से प्रतिक्रमण करते हुए चोवीस जिनेश्वरों को वंदन करता हूँ | (५०)