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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
सामायिक महासूत्र करेमि भंते ! सामाइयं! __सावज्जं जोगं पच्चक्खामि | जाव नियमं पज्जुवासामि, दुविहं, तिविहेणं,
मणेणं, वायाए, काएणं न करेमि न कारवेमि तस्स भंते ! पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि,
__ अप्पाणं वोसिरामि । (१) हे भगवंत ! मैं सामायिक करता हूं । प्रतिज्ञाबद्धत्तासे पापवाली प्रवृत्ति का त्याग करता हूं | (अतः) जब तक मैं (दो घडी के) नियम का सेवन करूं, (तब तक) त्रिविधि से द्विविध (यानी) मनसे, वचन से, काया से, (सावद्य प्रवृत्ति) न करूंगा, न कराऊंगा ।हे भगवंत ! (अब तक किये) सावद्य (प्रवृत्ति) का प्रतिक्रमण करता हूं, (गुरु समक्ष) गर्दा करता हूं, (स्वयं ही) निंदा करता हूँ, ( ऐसी सावद्यभाववाली) आत्मा का त्याग करता हूं |(१)
(चरवलावाले खडे होकर, अर्धा अंग झूकाकर हाथ जोडकर बोले,
बाकीके बैठके बोले।)
अतिचारोका संक्षिप्त सूत्र
इच्छामि ठामि काउस्सग्गं, Me जो मे संवच्छरीओ अइआरो कओ
___ काइओ, वाइओ, माणसिओ, उस्सुत्तो, उम्मग्गो अकप्पो, अकरणिज्जो,