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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
१) निश्चित किए हुए प्रमाण से अधिक या त्याग किये हुए सचित आहार का भक्षण २) सचितसे जुडी हुई वस्तु का भक्षण जैसे कि गुटली सहित आम इत्यादि ३) अपक्व आहार का भक्षण जैसे कि ताजा पीसा हुआ आटा, छाने बिना का आटा ४) कच्चे-पक्के पकाए हुए आहार का भक्षण जैसे कि शेकी हुई मकाई, जवारी का पुंख, इत्यादि ५) जिसमें खाने का भाग कम व फेंकने का भाग अधिक हो वैसी तुच्छ औषधिका भक्षण जैसे कि बेर, सीताफल इत्यादि, सातवें व्रत के भोगोपभोगो परिमाण गुणव्रतके इन पाँच अतिचार से वर्ष संबंधी जो कर्मों की अशुद्धि लगी हो उनकी मैं शुद्धि करता हुँ । (२१)
इंगाली वण साडी, भाडी फोडी सुवज्जए कम: वाणिज्जं चेव दंत, लक्ख रस केस विस विसयं । (२२) एवं खु जंत पिल्लण, कम्मं निल्लंछणं च दव दाणं; सर दह तलाय सोसं, असई पोसं च वज्जिज्जा । (२३) सातवाँ भोगोपभोग परिमाण गुणव्रत दो प्रकार का है-भोगसे व कर्मसे | उसमें कर्मसे पन्द्रह कर्मादान (अति हिंसक प्रवृत्तिवाले व्यापार) श्रावक को छोडने चाहिए | वे इस प्रकार के हैं | १) अंगार कर्म-इंटका निभाड़ा, कुंभार-लोहार आदि, जिसमें अग्निका अधिक काम पडता हो ऐसा काम |२) वन कर्म-जंगल काटना आदि जिसमें वनस्पति का अधिक समारंभ हो, ऐसा कार्य । ३) शकट कर्म-गाडी मोटर, खटारा आदि वाहन बनाने का कार्य | ४) भाटक कर्म-वाहन या पशुओं को किराये पर चलाने का कार्य । ५) स्फोटक कर्म-पृथ्वी तथा पत्थर फोडने का