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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
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(आने-जानेके नियमोका अतिचार) गमणस्स उ परिमाणे, दिसासु उड्डे अहे अतिरिअंच
वुड्डी सइ अंतरद्धा, पढमम्मि गुणव्वए निंदे। (१९) दिशा परिमाण नामक प्रथम गुणव्रत के विषय में १) ऊर्ध्वदिशामें जाने का प्रमाण लाँघने से २) अधोदिशा में जाने का प्रमाण लाँघने से ३) तिर्यग् अर्थात् दिशा और विदिशा में जाने का प्रमाण लाँघने से ४) एक दिशा का प्रमाण कम करके दूसरी दिशा का प्रमाण बढाने से और ५) दिशा का प्रमाण भूल जाने से, पहले गुणव्रत में जो अतिचार लगे हों, उनकी मैं निन्दा करता हूँ | (१९)
(भोग उपभोगके अतिचार)
मज्जम्मि अ मंसंम्मिअ, पुप्फे अ फले अ गंध मल्ले अ उवभोग परिभोगे ,
बीअम्मि गुणव्वओ निंदे | (२०) भोगोपभोग परिमाण नामक दूसरे गुणव्रत में मदिरा, मांस ('अ' शब्द से २२ अभक्ष्य, ३२ अनंतकाय, रात्रिभोजनादि) पुष्प, फल, सुगंधी द्रव्य, पुष्पमाला आदि (एक बार ही जिसका उपयोग हो सकता है वह जैसे कि खुराक,पानी, फल, इत्यादि), उपभोग (बारबार जिसका उपयोग हो सकता है वह जैसे कि घर, पुस्तक, वस्त्र, अलंकार इत्यादि) परिभोग संबंधी लगे हुए अतिचारों की मैं निन्दा करता हूँ | (२०) सच्चित्ते पडिबद्धे, अपोलि दुप्पोलिअंच आहारे.
तुच्छो सहि भक्खणया, पडिक्कमे संवच्छरिअं सव्वं । (२१)