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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
(मैथुनके अतिचार) चउत्थे अणुव्वयंमि, निच्चं परदार गमण विरईओ;
आयरिअम प्पसत्थे, इत्थ पमायप्पसगेणं। (१५) अपरिग्गहिआ इत्तर, अणंग विवाह तिव्व अणुरागे। चउत्थ वयस्सइआरे, पडिक्कमे संवच्छरिअं सव्वं । (१६) चौथे मैथुन अणु-व्रत में नित्य परस्त्री गमन से निवृत्ति में अप्रशस्त भाव और प्रमाद के कारण यहां लगे अतिचारों का में प्रतिक्रमण करता हूँ |(१५) अविवाहिता के साथ गमन करने से, अल्प समय के लिये रखी स्त्री के साथ गमन करने से, काम वासना जाग्रत करनेवाली क्रियाओं से, दसरों के विवाह कराने से और विषय भोग में तीव्र अनुराग रखने से वर्षभर में अणुव्रत में लगे सर्व अतिचारों का में प्रतिक्रमण करता हूँ |(१६)
___ (परिग्रहके अतिचार) इत्तो अणुव्वए पंचमंम्मि, आयरिअम प्पसत्थम्मि; परिमाण परिच्छेए, इत्थ पमाय प्पसंगेणं। (१७)
धण, धन्न, खित्त, वत्थु, रुप्प,
सुवन्ने, अ कुविअ परिमाणे. दुपए चउप्पयंमि य, पडिक्कमे संवच्छरिअं सव्वं । (१८) अब पांचवें अणु-व्रत में परिग्रह के परिमाण में अप्रशस्त भाव और प्रमाद के कारण यहाँ लगे अतिचारों का में प्रतिक्रमण करता हूँ | (१७) धन, धान्य, जमीन, मकान, चांदी, सोना, अन्य धातु, द्विपद और चतुष्पद के परिमाण में वर्षभर में लगे सर्व (अतिचारों) का में प्रतिक्रमण करता हूँ | (१८)