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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि,
अप्पाणं वोसिरामि । (१) हे भगवंत ! मैं सामायिक करता हूं । प्रतिज्ञाबद्धत्त्तासे पापवाली प्रवृत्ति का त्याग करता हूं । (अतः) जब तक मैं (दो घडी के) नियम का सेवन करूं, (तब तक) त्रिविधि से द्विविध (यानी) मनसे, वचन से, काया से, (सावद्य प्रवृत्ति) न करूंगा, न कराऊंगा । हे भगवंत ! (अब तक किये) सावद्य का प्रतिक्रमण करता हूं, (गुरु समक्ष) गर्दा करता हूं, (स्वयं ही) निंदा करता हूँ, (ऐसी सावद्य-भाववाली) आत्मा का त्याग करता हूं |(१)
श्रावकके बारह व्रत संबंधी लगे अतिचारकी क्षमायाचना
इच्छामि पडिक्कमिउं,
जो मे संवच्छरीओ
अइआरो कओ काइओ, वाइओ, माणसिओ, उस्सुत्तो, उम्मग्गो, अकप्पो, अकरणिज्जो, दुज्झाओ, दुव्विचिंतिओ, अणायारो, अणिच्छिअव्वो,
असावग पाउग्गो, नाणे, दंसणे, चरित्ता-चरित्ते, सुए, सामाइए, तिण्हं गुत्तीणं, चउण्हं कसायाणं,
पंचण्ह मणुव्वयाणं, तिण्हं गुण व्वयाणं, चउण्हं सिक्खा वयाणं,
___ बारस विहस्स सावग घम्मस्स, जं खंडिअं, जं विराहिअं, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ।