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जिन्हे श्रुतज्ञानरुपी समुद्र पर भक्ति है, उनके ज्ञानावरणीय कर्मोके समुहका, भगवती श्रुतदेवता, नाश करो।
देवताओं अविरतिमें होनेके कारण यहाँ 'वंदणवत्तिआए' नहीं बोलते । देवताओंका स्मरण, प्रार्थना करते है, उनको वंदन पूजन नहीं करते है।
(अब नीचे बैठकर, दांया धूंटना उपर करके 'वंदित्तु सूत्र पढना )
पंचपरमेष्ठिको नमस्कार नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, ( नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्वसाहूणं, एसो पंच नमुक्कारो, सव्व पावप्पणासणो,
मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं || (१) मैं नमस्कार करता हूं अरिहंतो को, मैं नमस्कार करता हूं सिद्धों को, मैं नमस्कार करता हूं आचार्यों को, मैं नमस्कार करता हूं उपाध्यायों को, मैं नमस्कार करता हूं लोक में (रहे) सर्व साधुओं को, यह पांचो को किया नमस्कार,समस्त (रागादि) पापों (या पापकर्मो) का अत्यंत नाशक है, और सर्व मंगलों में श्रेष्ठ मंगल है |(१)
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सामायिक महासूत्र करेमि भंते ! सामाइयं! . सावज्जं जोगं पच्चक्खामि | जाव नियमं पज्जुवासामि, दुविहं, तिविहेणं,
मणेणं, वायाए, काएणं न करेमि न कारवेमि तस्स भंते !