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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
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तपाचार के बारह भेद-छ: बाह्य छ: आभ्यंतर “अणसणमूणोअरिया” (१४)
अनशनः-शक्ति के होते हुए पर्वतिथि को उपवास आदि तप न किया । ऊनोदरी:- दो चार ग्रास कम न खाये । वृत्तिसंक्षेपः -द्रव्य-खाने की वस्तुओं का संक्षेप न किया । रस-विगय त्याग न किया। कायक्लेश-लोच आदि कष्ट न किया। संलीनताअंगोपांग का संकोच न किया । पच्चक्खाण तोड़ा | भोजन करते समय एकासणा, आयंबिल, प्रमुख में चौकी, पाट, आदि हिलता ठीक न किया । पच्चक्खाण पारना भुले, बैठते नवकार न पढ़ा। उठते पच्चक्खाण न किया । निवि, आयंबिल, उपवास आदि तप संबंधी जो कोई अतिचार संवत्सरी-दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते, अजानते लगा हो, वह सब मन, वचन, काया से मिच्छा मि दुक्कडं ।।
वीर्याचार के तीन अतिचार - 'अणिगूहिअबल-वीरिओ' (१५) पढ़ते, गुणते, विनय, वैयावच्च, देवपूजा, सामायिक, पौषध, दान, शील, तप, भावनादिक धर्म-कृत्य में, मन, वचन, काया का बल वीर्य पराक्रम फोरा नहीं । विधिपूर्वक पंचांग खमासमण न दिया । द्वादशावत वंदन की विधि भली प्रकार न की । अन्य चित्त निरादर से बैठा ।देव वंदन, प्रतिक्रमण में जल्दी की, इत्यादि वीर्याचार संबंधी जो कोई अतिचार संवत्सरी-दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते, अजानते लगा हो, वह सब,मन, वचन काया से मिच्छामि दुक्कडं || (१५) “नाणाई अट्ठ पइवय, सम्मसंलेहण पण पन्नर कम्मेसु | बारस तप विरि तिगं,चउव्वीसं सयं अइयारा I (१७)