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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
बारहवें अतिथि-संविभाग व्रत के पाँच अतिचार ‘सचित्ते निक्खिवणे' (१२)
सचित्त वस्तु से मिश्रित असूझता आहार पानी साधु-साध्वी को दिया | देने की इच्छा से सदोष वस्तु को निर्दोष कही। देने की इच्छा से पराई वस्तु को अपनी कही ।न देने की इच्छा से अपनी वस्तु को पराई कही। न देनेकी ईच्छासे निर्दोष वस्तुको सदोष बताया । गोचरी के समय इधर-उधर हो गया । गोचरी का समय टाला । वेवक्त साधु महाराज से प्रार्थना की । दुष्ट मनसे दान दिया। आये हुए गुणवान् की भक्ति न की । शक्ति के होते हुए स्वामी वात्सल्य न किया । अन्य किसी धर्मक्षेत्र की पड़ती देख कर,शक्ति होने पर भी मदद न की।दीन-दुःखी पर अनुकंपा न की ।इत्यादि बारहवें अतिथि-संविभाग-व्रत संबंधी जो कोई अतिचार संवत्सरी दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते, अजानते लगा हो वह सब मन, वचन, काय से मिच्छामि दुक्कडं || (१२) संलेखणा के पांच अतिचार-“इहलोएपरलोए" (१३)
इहलोगा-संसप्पओगे परलोगा-संसप्पओगे । जीविआसंसप्पओगे । मरणासं-सप्पओगे। कामभोगा-संसप्पओगे। धर्म के प्रभाव से इह लोक संबंधी राजऋद्धि भोगादि की वांछा की । परलोक में देव, देवेन्द्र, विद्याधर चक्रवर्ती आदि पदवी की इच्छा की | सुखी अवस्था में जीने की इच्छा की | दुःख आने पर मरने की वांछा की। काम भोग तणी इत्यादि संलेखणा-व्रत संबंधी जो कोई अतिचार पक्ष-दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते ,अजानते लगा हो वह सब मन, वचन, काया से मिच्छामि दुक्कडं ।। (१३)