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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
में झूला | जुआ खेला | नाटक आदि देखा। पशु, कण, खरीदना, सडी वस्तु।कर्कश वचन कहा । आक्रोश किया ।ताडना-तर्जना की। मत्सरता धारण की । सत्य-असत्य बोले । शाप दिया । भैंसा, साँढ, मेंढा, मुरगा, कुत्ते, आदि लड़वाये या इनकी लड़ाई देखी।ऋद्धिमान् की ऋद्धि देख ईर्षा की। मिट्टी, नमक, धान, बिनोले बिना कारण मसले। उसके उपर बैठे।हरी वनस्पति मसली |शस्त्रादि बनवाये। अधिक निद्रा की | रागद्वेष के वश से एक का भला चाहा एक का बुरा चाहा। मृत्यु की वांछा की । इत्यादि आठवें अनर्थ-दंड-विरमण-व्रत संबंधी जो कोई अतिचार संवत्सरी दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते, अजानते लगा हो, वह सब मन, वचन, काया से मिच्छा मि दुक्कडं | (८) नवमें सामायिक व्रत के पांच अतिचार-“तिविहे दुप्पणिहाणे” (९) सामायिक में संकल्प विकल्प किया। चित्त स्थिर न रखा | सावद्य वचन बोला | प्रमार्जन किये बिना शरीर हिलाया, इधर उधर किया। शक्ति होने पर भी सामायिक न किया ।सामायिक में खुले मुहं बोला। निद्रा आई। विकथा की| घर संबंधी विचार किया। दीपक या बिजली का प्रकाश शरीर पर पड़ा | सचित्त वस्तु का संघटन हुआ। स्त्री तिर्यंच आदि का निरंतर परस्पर संघटन हुआ ।मुहपत्ति संघट्टी। सामायिक अधूरा पारा, बिना पारे उठा ।इत्यादि नवमें सामायिक व्रत संबंधी जो कोई अतिचार संवत्सरी दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते, अजानते लगा हो वह सब मन, वचन, काया से मिच्छामि दुक्कडं ।। (९) दसवें देशावगाशिक व्रत के पांच अतिचार - आणवणे पेसवणे (१०)