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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
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पकवान करके बेचा, वाशी मख्खनका घी बनाया, फागुन मासके उपरांत तीलका उपयोग किया, दलीदा किया, अंगीठा कराया, श्वान-बिल्ली...पोपट पाला, पोषा, वासी गोबर रखा, लींपणगुपणका महारंभ किया, जयणापूर्वक अग्नि न जलाई, घी-तेलगुड जैसी खानेकी चीजे खुली रखी, उसमे मक्खी, चीहे, छिपकली, चींटी, न गीरे ऐसी जयणा न की, कुल पंद्रह कर्मादान महा आरम्भ किये कराये करते हुए को अच्छा समझा । ये पाँच सामान्य, कुल पंद्रह कार्मादान महा आरम्भ किये कराये करते हुए को अच्छा समझा । श्वान बिल्ली आदि पोषे, पाले, महासावद्य पापकारी कठोर काम किया ।इत्यादि सातवें भोगोपभोग विरमण व्रत संबंधी जो कोई अतिचार संवत्सरी-दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते अजानते लगा हो वह सब मन, वचन, काया से मिच्छ मि दुक्कडं। आठवें अनर्थदंड विरमण व्रत के पांच अतिचार-“कंदप्पे कुक्कु इए” (८)
कंदर्प - कामाधीन होकर नट, विट, वेश्या आदि से हास्यखेल क्रीडा-कुतूहल किया । स्त्री पुरुष के हाव-भाव, रूप, शृंगार संबंधी वार्ता की । विषय-रस-पोषक कथा की, स्त्री कथा, देशकथा, भक्तकथा, राजकथा, ये चार विकथाएँ की । पराई भांजगढ़ की । किसी की चुगलखोरी की | आर्तध्यान, रौद्र-ध्यान ध्याया । खांडा, कटार, कोश, कुल्हाड़ी, रथ, ऊखल, मूसल, अग्नि, चक्की आदि वस्तुएँ दाक्षिण्यता-वश किसी से मांगी दी । पापोपदेश किया । अष्टमी चतुर्दशी के दिन पीसने आदि का नियम तोड़ा ।मूर्खता से असंबद्ध वाक्य बोला । प्रमादाचरण सेवन किया। नहाते-धोते दातुन करते जीव आकुलित मोरी में पानी डाला।झूले