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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
घात किया, ठगी की, हिसाब-किताब में किसी को घोखा दिया । माता, पिता, पुत्र, मित्र, स्त्री आदि के साथ ठगी कर किसी को दिया, अथवा पूंजी (अमानत) अलहदा रखी । अमानत रखी हुई वस्तु से इन्कार किया ।पड़ी हुई चीज उठाई, इत्यादि तीसरे स्थूल अदत्तादान विरमण-व्रत सम्बन्धी जो कोई अतिचार संवत्सरी-दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते, अजानते लगा हो, वह सब मन, वचन, काया से मिच्छामि दुक्कडं || (३) चौथे स्वदारासंतोष, परस्त्रीगमन विरमणव्रतके पाँच अतिचार "अप्परिग्गहिया इत्तर" (४)
परस्त्रीगमन किया । अविवाहिता, कुमारी, विधवा, वेश्यादिक से गमन किया । अनंगक्रिडा की । काम आदि की विशेष जागृति की अभिलाषा से सराग वचन कहा । अष्टमी, चौदस आदि पर्वतिथि का नियम तोड़ा । स्त्री के अंगोपांग देखे, तीव्र अभिलाषा की । कुविकल्प चिंतन किया। पराये नाते जोड़े। गुड्डे-गुड्डियों (ढींगला ढींगली) का विवाह किया या कराया । अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार, अनाचार, स्वप्न, स्वप्नांतर हुआ | कुस्वप्न आया। स्त्री, नट, विट,भांड, वेश्यादिक से हास्य किया | स्वस्त्री में सन्तोष न किया, इत्यादि चौथे स्वदारा-संतोष-परस्त्री-गमन-विरमण-व्रत सम्बन्धी जो कोई अतिचार संवत्सरी-दिवस में सुक्ष्म या बादर जानते अजानते लगा हो, वह सब मन, वचन, काया से मिच्छा मि दुक्कडं | (४) ____ पांचवे स्थूल परिग्रह परिमाण व्रत के पांच अतिचार “धण धन्न खित्त वत्थु” (५)