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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
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पहेले स्थूल - प्राणातिपात विरमण - व्रत सम्बन्धी जो कोई अतिचार संवत्सरी दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते, अजानते लगा हो, वह सब मन, वचन, काया से मिच्छामि दुक्कडं । (१) दूसरे स्थूल - मृषावाद - विरमण - व्रत के पाँच अतिचार " सहसा रहस्सदारे” (२)
सहसात्कार - बिना विचारे एकदम किसी को अयोग्य कलंक दिया । स्व-स्त्री सम्बन्धी गुप्त बात प्रगट की, अथवा अन्य किसी का मंत्र-भेद, मर्म प्रकट किया । किसी को दुःखी करने के लिए झूठी सलाह दी, झूठा लेख लिखा, झुठी साक्षी दी । अमानत ते खयानत की । किसी की धरोहर रखी हुई वस्तु वापस न दी । कन्या, गौ, भूमि, जनावर सम्बन्धी लेन देन में लड़तेझगड़ते, वाद-विवाद में बडा झूठ बोला । हाथ-पैर आदि की गाली दी । मर्म वचन बोला । इत्यादि
दूसरे स्थूल - मृषावाद - विरमण - व्रत सम्बन्धी जो कोई अतिचार संवत्सरी-दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते, अजानते लगा हो वह सब मन, वचन, काया से मिच्छा मि दुक्कडं । (२) तीसरे स्थूल - अदतादान - विरमण-व्रत के पाँच अतिचार“तेनाहडप्पओगे” (३)
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घर या बहारसे आई हुई पराई वस्तु बिना पूछे ग्रहणकी घर, बाहिर, क्षेत्र पराई चीज भेजी, वापरी अथवा आज्ञा बिना अपने काम में ली । चोरी की वस्तु ली। चोर को सहायता दी । राज्य - विरुद्ध कर्म किया । अच्छी, बुरी, सजीव, निर्जीव, नई, पुरानी वस्तु का मेल संमेल किया । जकात की चोरी की, लेते देते तराजू की डंडी चढ़ाई, अथवा देते हुए कम दिया, लेते हुए अधिक लिया, रिश्वत खाई । विश्वास