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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
पहले
स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रत के पाँच अतिचार "वह बंध छव्विच्छेए” (१)
द्विपद, चतुष्पद आदि जीव का क्रोध -वश ताडन किया, घाव लगाया, जकड़ कर बांधा । अधिक बोज लादा । निर्लांछनकर्म, नासिका छिदवायी, कर्ण छेदन करवाया, खस्सी किया । दाना-घास-पानी की समय पर सार-संभाल न की, लेन देन में किसीके बदले किसी को भूखा रखा, पास खड़े होकर मरवाया, कैद करवाया । सड़े हुए धान को बिना सफाई किए काम में लिया, तथा अनाज बिना शोधे पिसवाया, धूप में सुखाया । ईधंन, लकड़ी, उपले, गोहे, आदि बिना देखे जलाये, उनमें सर्प, बिच्छू, कानखजूरा, कीड़ी, मकौड़ी, सरोला, मांकड, जुआ, गिंगोड़ा आदि जीवों का नाश हुआ । किसी जीव को दबाया, दुःख दिया । दुःखी जीव को अच्छी जगह पर न रखा । चींटी (कीड़ी) मकोड़ी के अंडे नाश किये, लीख फोडी, दीमक, कीड़ी, मकोड़ी, घीमेल, कातरा, चूडेल, पतंगिआ, देडका, अलसियां, ईयल, कूंदा, डांस, मसा, मगतरां, माखी, टिड्डी प्रमुख जीव का नाश किया । चील, काग, कबूतर आदि के रहने की जगह का नाश किया । घौंसले तोड़े । चलते फिरते या अन्य कुछ काम काज करते निर्दयपना किया | भली प्रकार जीव रक्षा न की । बिना छाने पानी से स्नानादि काम-काज किया, कपड़े धोये । यतना-पूर्वक कामकाज न किया । चारपाई, खटोला, पीढ़ा, पीढ़ी आदि धूप में रखे । डंडे आदि से झटकाये । जीवाकुल ( जीव संसक्त) जमीन को लीपा । दलते, कूटते, लींपते या अन्य कुछ काम-काज करते यतना न की । अष्टमी, चौदस, आदि तिथि का नियम तोड़ा । धूणी करवाई, इत्यादि