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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
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धन, धान्य, क्षेत्र, वस्तु, सोना, चांदी, तांबु, पित्तल, बर्तन, आदि द्विपद् दास, दासी, चतुष्पद-गौ, बैल, घोड़ा आदि, नव प्रकार के परिग्रह का नियम न लिया, लेकर बयाढा । अथवा अधिक देखकर मूर्छा-लगे संक्षेप न किया, माता, पिता, पुत्र, स्त्री के नाम किया । परिग्रह का परिमाण नहीं किया। करके भुलाया याद न किया ।इत्यादि पांचवे स्थूल-परिग्रह-परिणाम-व्रत संबंधी जो कोई अतिचार संवत्सरी-दिवस में सुक्ष्म या बादर जानते, अजानते लगा हो, वह सब मन, वचन, काया से मिच्छामि दुक्कडं | (५) छठे दिक्-परिमाण-व्रत के पांच अतिचार - “गमणस्स उ परिमाणे” (६)
ऊर्ध्व-दिशि, अधो-दिशि, तिर्यग्-दिशि जाने-आने के नियमित परिमाण उपरांत, भूल से गया । नियम तोड़ा । परिणाम उपरांत सांसारिक कार्य के लिये अन्य देश से वस्तु मँगवाई। अपने पास से वहाँ भेजी। नौका-जहाज़ आदि द्वारा व्यापार किया । वर्षाकाल में एक ग्राम से दूसरे ग्राम में गया । एक दिशाका परिमाण संक्षिप्त करके दूसरी दिशाका विस्तृत किया ।इत्यादि छट्टे दिक्-परिणाम व्रत संबंधी जो कोई अतिचार संवत्सरीदिवस में सूक्ष्म या बादर जानते, अजानते लगा हो, वह सब मन, वचन, काया से मिच्छामि दुक्कडं | (६) __सातवें भोगोपभोग-व्रत के भोजन आश्रित पाँच अतिचार और कर्म आश्रित पंद्रह अतिचार एवं बीस अतिचार “सच्चित्ते पडिबद्धे (७)