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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
(यह सूत्र ‘गुरु क्षमापना' रुप होनेसे चरवलावाले श्रावक खडे हो जाए ।)
(चरवलावाले खडे होकर अर्धा अंग झूकाकर, हाथ जोडकर बोले, बाकी श्रावक संघ बैठके बोले ) व्रतोमां लगे अतिचारकी आलोचनाके साथ क्षमायाचना इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! - संवच्छरीअं आलोउं ?
इच्छं, आलोएमि. जो मे संवच्छरीओ आइयारो कओ, काइओ, वाइओ, माणसिओ, उस्सुत्तो, उम्मग्गो, अकप्पो, अकरणिज्जो, दुज्झाओ, दुविचिंतिओ, आणायारो, अणिच्छिअव्वो, असावग पाउग्गो,
नाणे, दंसणे, चरित्ता चरित्ते, सुए, सामाइए, तिण्हं गुत्तीणं, चउण्हं कसायाणं, पंचण्ह मणुव्वयाणं, तिण्हं गुण व्वयाणं, चउण्हं सिक्खा वयाणं, बारस विहस्स सावग धम्मस्स, जं खंडिअं, जं विराहिअं,
। तस्स मिच्छा मि दुक्कडं | (१) हे भगवन् ! (वर्षभरमें) जो अतिचार हुआ हो उसकी आलोचना करे ? (गुरु कहे) आलोचना करो | काया द्वारा, वाणी द्वारा, मन द्वारा, उत्सूत्र कहने से, उन्मार्ग में चलने से, अकल्पनीय वर्तन करने से, अकरणीय कार्य करने से, दुष्ट ध्यान करने से, दुष्ट चिंतन करने से, अनाचार करने से, अनिच्छित वर्तन से, श्रावक के योग्य व्यवहार से विरुद्ध आचरण करने से, ज्ञान संबंधी, दर्शन संबंधी, देश-विरति रुप चारित्र संबंधी, श्रुत ज्ञान संबंधी,