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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
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(चरवला या कटासणा उपर दायें हाथकी स्थापना कर) बारमासाणं, चोबीस पखाणं,
त्रणसो साठ राईदिवसाणं, जंकिंचि अपत्ति परपत्ति, भत्ते, पाणे, विणओ, वेयावच्चे, आलावे, संलावे, उच्चासणे, समासणे,
अंतरभासाओ, उवरिभासाओ,
जंकिंचि मज्झ विणयपरिहीणं सहुमं वा बायरं वा तुब्भे जाणह अहं न जाणामि
तस्स मिच्छा मि दुक्कडं. हे भगवन्, इच्छापूर्वक आज्ञा दिजिए ! वर्ष दिवस संबंधी अपराधके पश्चातापके लिए उपस्थित हुआ हुँ । आज्ञा मान्य है | संवत्सरी दिवसमें अपराधकी क्षमा चाहता हुं |बार मास, चौबीस पक्ष, तीनसे साठ राई-देवसि के प्रतिक्रमणमें आहार-पानीमें, विनयमें, वैयावृत्यमें, बोलनेमें, बातचीत करनेमें, उच्च आसन रखनेमें, समान आसन रखनेमें, बीचमें बोलनेसे, गुरुकी बातसे उपर हो के बोलनेसे, गुरुवचनकी टीका करने जैसा जो कोई अप्रिय या विशेष अप्रीति उपजे ऐसा कार्य किया हो, मुझसे कोई सुक्ष्म या स्थुल, कम या ज्यादा, जो कोई विनयरहित वर्तन हुआ हो, जो आप जानते हो परंतु मै नहीं जानता, ऐसा जो कोई अपराध हुआ हो तो ते संबंधी मेरे सब अपराध मिथ्या हो ।
यह सूत्रकों लघु गुरुवंदन' भी कहते है। तीर्थंकर भगवंत धर्म एवं शास्त्रको पहचाननेमें गुरु महाराज के अलावा दूसरा कोईभी साधन नहीं है। उनके इस उपकारके बदले हमें उनकी संभाल और बहुमानके प्रश्नोको पूछकर उनकी यतना दूर करनी चाहिए ।