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________________ १२४ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित के लिये आज्ञा प्रदान करो । अशुभ व्यापार को त्याग करके, आपके चरणों को मेरी काया (मेरे हाथ) द्वारा स्पर्श करने से हुए खेद के लिए आप क्षमा करें । आपका दिन अल्प ग्लानि और अधिक सुख पूर्वक व्यतीत हुआ है ? आपकी (संयम) यात्रा (ठीक चल रही है ) ? आपका मन और इंद्रियाँ पीड़ा रहित है ? हे क्षमाश्रमण ! पूरे वर्षमें हुए अपराधों की मैं क्षमा मांगता हूँ । आवश्यक क्रिया के लिये (मैं अवग्रह से बाहर जाता हूँ) । वर्षभरमें क्षमाश्रमण के प्रति तैंतीस में से अन्य जो कोई भी आशातना कि हो (उसका ) मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। जो कोई मिथ्या भाव द्वारा, मन, वचन या काया के दुष्कृत्य द्वारा; क्रोध, मान, माया या लोभ से; सर्व काल में, सर्व प्रकार के मिथ्या उपचारों से या सर्व प्रकार के धर्म अतिक्रमण से हुए आशातना द्वारा मुझसे जो कोई अतिचार हुआ हो, हे क्षमाश्रमण ! उनका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ, निंदा करता हूँ, गर्हा करता हूँ एवं (अशुभ प्रवृत्तियों वालीं) आत्मा का त्याग करता हूँ । ( यह सूत्र गुरुके सामने क्षमारुप होनेसे चरवलावाले खडे हो जाए ।) गुरुके सामने कृतज्ञभाव व्यक्त करता हुआ सूत्र इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! बुद्धा, खाणं अब्भुडिओमि अब्मिंतर संवच्छरीअं खामेउं ? 'इच्छं' खामेमि संवच्छरीअं.
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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