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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
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अनुमोदना से) दिवस संबंधी छोटे-बड़े जो अतिचार लगे हों उन सबसे मैं निवृत्त होता हुँ । (३)
(ज्ञानके अतिचार)
जंबद्ध मंदि ए हिं, चउहिं कसाएहिं अप्पसत्थेहिं रागेण व दोसेण व, तं निंदे तं च गरिहामि । (४)
अप्रशस्त (अशुभ कार्य में प्रवृत्त बनी हुई) इन्द्रियों से, चार कषायों से (तीन योगों) तथा राग और द्वेष से जो (अशुभ - कर्म) बंधा हो, उसकी मैं निंदा करता हुँ, उसकी मैं गर्हा करता हुँ । (४)
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(सम्यग् दर्शनके अतिचार)
आगमणे, निग्गमणे, ठाणे, चंकमणे, अणाभोगे; अभिओगे अ निओगे, पडिक्कमे देसिअं सव्वं ।
(4)
उपयोगशून्यता से, दबाव होने से अथवा नौकरी आदि का कारण आने में, जाने में, एक स्थान पर खड़े रहने में व बारंबार चलने में अथवा इधर-उधर फिरने में दिवस संबंधी जो (अशुभकर्म) बंधे हो उन सबसे मैं निवृत्त होता हुँ । (अभियोग = दबाव, राजा, लोकसमूह, बलवान, देवता, मातापितादि वडिलजन तथा अकाल या अरण्यमें फँसना वगैरह आपत्तियों से आया हुआ दबाव, नियोग = फर्ज) (५)
(सम्यक्त्व के अतिचार)
संका, कंख, विगिच्छा, पसंस तह संथवो कुलिंगीसु सम्मत्तस्स ईआरे, पडिक्कमे देसिअं सव्वं ।
(६)
छक्काय समारंभे, पयणे अ पयावणे अ जे दोसा
अत्तट्ठा य परट्ठा, उभयट्ठा चेव तं निंदे |
(७)