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________________ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित १) मोक्षमार्ग में शंका, २) अन्यमत (धर्म) की इच्छा, क्रिया के फलमें संदेह या धर्मियों के प्रति जुगुप्सा (घृणा, तिरस्कार), ३) मोक्षमार्गमें बाधक अन्य दार्शनिकों की प्रशंसा व ४) उनका परिचय-सम्यक्त्व विषयक अतिचारों में दिवस संबंधी लगे हुए अशुभ कर्मों की मैं शुद्धि करता हुँ । (६) छकाय के जीवों की हिंसायुक्त प्रवृत्ति करते हुए तथा अपने लिए, दूसरों के लिए और दोनो (अपने और दुसरोंके) के लिए (भोजन) रांधते हुए, रंधाते हुए (या अनुमोदन में) जो कर्म बंधे हों, उनकी मैं निंदा करता हुँ । (७) १०४ (सामान्यसे बारह व्रतके अतिचार) पंचह मणुव्वयाणं, गुण व्वयाणं च तिण्हमइयारे; सिक्खाणं च चउन्हं, पडिक्कमे देसिअं सव्वं । (८) पांच अणुव्रत (स्थूल प्राणातिपात विरमण आदि) तीन गुणवत (दिक्परिमाण व्रतादि), चार शिक्षाव्रतों (सामायिकादि ) ( तप, संलेखणा व सम्यक्त्वादि के) विषय में दिवस संबंधी छोटे बड़े जो अतिचार लगे हों, उन सबसे मैं निवृत्त होता हुँ । (८) (प्राणातिपात व्रतके अतिचार) पढमे अणुव्वयम्मि, थूलग पाणाइ वाय विरईओ आयरिअ मप्पसत्थे, इत्थ पमाय प्पसंगेणं । (५) वह बंध छविच्छेए, अइभारे भत्तपाण- वुच्छेए पढम वयस्सइयारे, पडिक्कमे देसिअं सव्वं । (१०) प्रथम अणुव्रत स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रत के विषय में पांच अतिचार-प्रमाद से परवश होकर या रागादि अप्रशस्त (अशुभ)
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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