SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९६ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित श्रुत ज्ञान संबंधी, सामायिक संबंधी, तीन गुप्तियों संबंधी, चार कषाय संबंधी और पांच अणु व्रत में तीन गुण व्रत में, चार शिक्षाव्रत में- बारह प्रकार के श्रावक धर्म में खंडना हुई हो, जो विराधना हुई हो, मेरे द्वारा दिवस में जो अतिचार हुए हों, मेरे वे सर्व दुष्कृत्य मिथ्या हों । यह सुत्रका दूसरा नाम 'अतिचार आलोचना सूत्र' भी है। जिस कारणसे कषायोके उदयसे हुए सर्व अतिचारोके लिए साधकको अत्यंत दिलगीर होना है और फिर ऐसा न करनेके भावके साथ 'तस्स मिच्छामि दुक्कडं' ये शब्द बोलने है । ये सूत्रमें पांच आचारोके अतिचारोकी आलोचन तथा प्रतिक्रमणमें मिच्छा मि दुक्कडं देकर विशेष शुद्धिरुप सामायिक के लिए कायोत्सर्ग करना है । सात लाख (हाथ जोडकर) समस्त जीवराशि प्रति हुए हिंसा दोष स्वरुप प्रथम पाप स्थानककी विस्तारसे आलोचना सात लाख पृथ्वीकाय, सात लाख अप्काय, . सात लाख तेउकाय, सात लाख वाउकाय, दश लाख प्रत्येक वनस्पतिकाय, चौद लाख साधारण वनस्पतिकाय, दो लाख बेइंद्रिय, दो लाख तेइंद्रिय, दो लाख चउरिंद्रिय, चार लाख देवता, चार लाख नारकी, चार लाख तिर्यंच पंचेन्द्रिय, चौदह लाख मनुष्य, इस प्रकार चोराशी लाख
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy