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________________ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित जीवयोनियों में से मेरे जीव ने किसी जीव का जो हनन किया हो, हनन कराया हो, हनन करते हुए का अनुमोदन किया हो, वह सभी मन-वचन-काया से मिच्छा मि दुक्कडं । ९७ सात लाख पृथ्वीकाय, सात लाख अप्काय, सात लाख तेउकाय, सात लाख वाउकाय, दस लाख प्रत्येक वनस्पति-काय, चौदह लाख साधारण वनस्पति- काय, दो लाख द्वींद्रिय, दो लाख त्रींद्रिय, दो लाख चउरिंद्रिय, चार लाख देवता, चार लाख नारकी, चार लाख तिर्यंच पंचेंद्रिय, चौदह लाख मनुष्य- इस तरह चौरासी लाख जीव-योनि में से मेरे जीव ने जो कोई जीवहिंसा की हो, करायी हो, करते हुए का अनुमोदन किया हो वे सभी मेरे दुष्कृत्य मन-वचन-काया से मिथ्या हों । (१) ८४ लाख 'जीवायोनि' में उत्पन्न हुए विश्वके समस्त जीवोके प्रति मैत्रीभाव होना चाहिए, फिरभी किसी कारणवश उनमें से किसी भी जीव की, किसी भी कारणवश हिंसा की हो, किसीसे कराई हो या करनेकी अनुमति दी हो तो उस हिंसाके लिए मिथ्या दुष्कृत्य देना यह इस सूत्रका सार है । अठारह पाप स्थानक (हाथ जोडकर) सब पापस्थानकोकी गुरु समक्ष निवेदना कर मिथ्या दुष्कृत कहेनासर्व पापस्थानको गुरुके समक्ष आलोचना पहला प्राणातिपात, दूसरा मृषावाद, तीसरा अदत्ता-दान, चौथा मैथुन, पांचवां परिग्रह, छठा क्रोध,
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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